Saturday, November 3, 2012

{ ३९० } {Nov 2012}





तसव्वुर में वो ही नक्श उभर आया है
अब्र-ए-बाराँ में एक चाँद नजर आया है
दरिया की लहरों पे थिरके अक्स उसका
हर जगह उसका ही नूर नजर आया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment