Sunday, November 4, 2012

{ ३९२ } {Nov 2012}





कटती शाख पर परिंदों का डेरा हो
बीते सिर्फ़ आधी रात औ’ सबेरा हो
हादसों का अजीब सा मंजर होगा
जो जलते चिरागों के नीचे अँधेरा हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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