पल्लव
Saturday, November 3, 2012
{ ३८८ } {Nov 2012}
जाने कहाँ गईं रूठ कर वो चाँदनी रातें
वो रँगीन बहारें, वो मोहब्बत की रातें
गर होती रही ऐसी साजिशों पे साजिशें
कैसे बनेगी हकीकत ये ख्वाबों की रातें।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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