पल्लव
Thursday, January 22, 2015
{ ८५२ } {Dec 2014}
ज़िन्दगी के अर्थ अब खो गये हैं
निरर्थक शब्द सार्थक हो गये हैं
फ़सल कट रही पीड़ा दुख की ही
शायद जमीं में काँटे बो गये हैं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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