पल्लव
Saturday, April 11, 2015
{ ८८४ } {March 2015}
तकिये पर सपने आज भी सोए होंगें
हँसने के पहले वो जी भरकर रोए होंगे
क्यों नींदों की अँखियों से दूरी हो गयी
तुमने भी शायद कुछ काँटे बोए होंगें।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment