पल्लव
Monday, April 13, 2015
{ ८९८ } {March 2015}
तेरी मुस्कान भी कितनी मौलिक है
जो किसी मणिदीप सी दमकती है
रूपसागर की ये कमिलिनी भी तो
जैसे तेरा ही अनुवाद सी लगती है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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