पल्लव
Saturday, April 11, 2015
{ ८८५ } {March 2015}
गर ज़ख्म भर जायेंगें तो फ़िर किसे याद करेंगे हम
इन टीस भरे रिसते हुए ज़ख्मों को हरा ही रहने दो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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