Saturday, April 11, 2015

{ ८८६ } {March 2015}





एक तितली उडी हुआ फ़ूल बेचैन है
पाँखुरी-पाँखुरी हो कट रही अब रैन है
घायल हुआ है जब से रूप का मौसम
मछली बिन ताल भी हो गया बेचैन है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment