Friday, February 22, 2013

{ ४८८ } {Feb 2013}





रात है बरसात है छाई बदली घर भी दूर है
वस्ले यारी का निभाना भी ऐसे में दस्तूर है
आओ छुप जाओ, पुकारता यार का दामन
वस्ल की हसरत है, दिल को मँजूर भी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment