Wednesday, February 27, 2013

{ ५०२ } {Feb 2013}





जिस छवि को छूकर संयम का मन डोले
उनसे भी हम ने अपने अधर नहीं खोले
हम ठहरे वीतरागी फ़िर भी न जाने क्यो
चाँद की चाँदनी हमसे हँस-हँस कर बोले।।

गोपाल कृष्ण शुक्ल

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