पल्लव
Sunday, September 9, 2012
{ ३४१ } {Sept 2012}
कुछ तो हो अब ऐसा कि जीने की चाह निकले
कहीं से तो बे-पनाह मोहब्बत की राह निकले
आते जो करीब फ़िर बदल जाती निगाह उनकी
अब कोई तो हो ऐसा जो मोहब्बत ख्वाह निकले।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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