Sunday, September 30, 2012

{ ३८० } {Sept 2012}






मेरे अधरों की पगडंडी, कभी चरण हँसी के चूम न पाई
मेरी मादकता मादक बनकर अपने मद में झूम न पाई
फ़ट जात उर मुखर वेदना से जब आँसू का उपहार मिले
श्वासों की उर्मि शैय्या पर जब न मुझको प्यार मिले।।


--- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment