Thursday, September 27, 2012

{ ३६० } {Sept 2012}






तम की बढ रही हैं गहराइयाँ
लम्बी होने लगी हैं परछाइयाँ
प्रीत को मिल रहे नहीं मीत हैं
इस तरह बढ रही हैं तनहाइयाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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