पल्लव
Thursday, September 27, 2012
{ ३५९ } {Sept 2012}
आज मित्रता बैर करे है खोले अपने बाल
प्रेम कहाँ से पायें जब इंसानों का है काल
घोर अन्धेरा, जर्द सबेरा दोनो उसके रूप
किसको छोडूँ या रखूँ, आ पडा जँजाल।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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