पल्लव
Thursday, September 27, 2012
{ ३६१ } {Sept 2012}
अभिनय का दौर है रँग-मँच हुए घर
उतर गया रिश्तों का रगमयी स्वर
सोंधी माटी खो गई कहीं बीच शहर
खारजारों में उलझ के रह गई डगर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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