Friday, August 17, 2012

{ ३१० } {Aug 2012}





लबों पर शिकवे-गिले सजाते रहे हम
तुम्हारी वफ़ाओं को सहलाते रहे हम
यकीनों की कश्ती भँवर में फ़ँस गई
इसलिये दरिया में डगमगाते रहे हम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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