करवटें बदलती रही रात कितनी बार
पर दुखद स्वप्न का भार न सकी उतार
बहुत ही कठिन थी वह वहशियाना घडी
भूखे दरिन्दो की चोट, वहशियों की मार
अब अपने ही घर मे कैद सोंचती रो रही
क्यों न आया कोई भाई, बन मददगार।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
(गुवाहाटी मे जुलाई २०१२ को सरेआम एक बहन को बेइज्जत किया गया पर कोई "मर्द" आगे आ कर रोकने की हिम्मत न कर सका, द्रवित मन से निकली पँक्तियाँ)
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