पल्लव
Tuesday, August 28, 2012
{ ३३१ } {Aug 2012}
उतर कर जल में केश फ़ैलाये, चली तैरती घिरी घटायें
हर एक छवि पर तुल जायें, कवियों की सौ-सौ उपमायें
ऐसे ही अवसर पर अक्सर ही दबा दर्द उभरा करता है
और भरा करता है भावों के स्वर में गीतों की श्रँखलायें।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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