Friday, August 17, 2012

{ ३११ } {Aug 2012}





कुछ तो हो अब ऐसा कि जीने की चाह निकले
कहीं से तो बेपनाह मोहब्बत की राह निकले
इतनी बडी है कायनात, इतना बडा जमाना
शिकस्ता-दिलों का कोई तो खैरख्वाह निकले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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