पल्लव
Monday, August 27, 2012
{ ३२९ } {Aug 2012}
जल रहा गुलशन, चमन कसमसा रहा
बागबान की रूह तक सहमी-सहमी है
गुलों की खुश्बुएँ, महक और रौनकें भी
आँसू भरी, खौफ़ज़दा, थहमी-थहमी हैं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment