पल्लव
Monday, June 3, 2013
{ ५८२ } {June 2013}
मँजरियों की यादे उमड-घुमड झूल रहीं झूले पर
भूल गये हो तुम लेकिन हम कब भूले इसे मगर
नयनों से वर्षा की बौछारें निश दिन झरती रहती
मुस्कानों की लिये पालकी कब से तक रही डगर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
1 comment:
Tamasha-E-Zindagi
June 4, 2013 at 1:27 AM
बहुत सुन्दर
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बहुत सुन्दर
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