पल्लव
Monday, May 7, 2012
{ २४८ } {May 2012}
कितनी ही कलियाँ उपवन में
सुरभित हो-हो कर मुरझातीं
कितनी ही सुधियाँ जीवन में
बनती हैं बन कर मिट जातीं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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