Wednesday, May 9, 2012

{ २६९ } {May 2012}




मयकदे का फ़साना कुछ और है
हरतरफ़ बस जाम का ही दौर है
साकी की नजर उठ्ठे जिस तरफ़
मयकशों को न मिले कोई ठौर है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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