Monday, May 7, 2012

{ २५७ } {May 2012}




मजबूरियाँ कब रहीं किसी के वश में
खौफ़ज़दा चेहरे भागते कश्मकश में
सुलह-समझौतों से बढती ज़िन्दगी
परिन्दे सीज़िन्दगी पर नही उश में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

(उश = घोंसला)

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