पल्लव
Monday, May 7, 2012
{ २६० } {May 2012}
रात नींदों में सुख-सपन सजाये
दिन भी जैसे-तैसे ही गुजर जाये
साँस चल रही है पर नही मालूम
किस वन-उपवन को डगर जाये।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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