पल्लव
Thursday, February 23, 2012
{ १८३ } {Feb 2012}
सागर के जोश की तरह तेरा उफ़नता है शबाब
कैसे बचाऊं तुमको यह जमाना बहुत है खराब
पी लेते हैं पलकों से उसे मये-पैमाना जानकर
तेरी आँखों से जब-जब भी छलकती है सराब ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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