Thursday, February 23, 2012

{ १७१ } {Feb 2012}





तन का स्पंदन समझ रहा हूँ
स्वर का बुझापन समझ रहा हूँ
सारे बादल बिन बरसे लैट गये
मन का सूनापन समझ रहा हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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