पल्लव
Thursday, February 23, 2012
{ १७८ } {Feb 2012}
रात अलकों में,
भोर पलकों में
जैसे हों चाँद-चकोर पलकों में
मुखडा लगता है मए - पैमाना
मदिरा की है हिलोर पलकों में ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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