Monday, February 13, 2012

{ १५८ } {Feb 2012}






समय गढता रूप को, पर प्रीति टूटा खिलौना
छलछला जाते नयन जब टूटता सपन सलोना
घोसला भाता नहीं तिनका-तिनका हो बिखरता
ज़िन्दगी है एक घना वन, चैन काँटों का बिछौना ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल .

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