Monday, February 13, 2012

{ १६२ } {Feb 2012}






जग की मर्यादा में रहकर नारी
प्रतिपल ही वियोग जीती है
आहों के स्वर में आँसू गाती
जग की यह कैसी कुरीति है ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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