पल्लव
Saturday, February 11, 2012
{ १५२ } {Feb 2012}
बदलियों में छिप रही हैं चाँद की मखमूर आँखे
नूर-ए-हुस्ना की मस्तियों मे हो रही हैं चूर आँखें
चार हो या लाचार हों, पर दूर से नजदीक आकर
हो रही हैं मस्त प्रीति के माधुर्य से भरपूर आँखें ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment