Sunday, April 14, 2013

{ ५३३ } {April 2013}





आँख की कोर से जब तुमने मेरी ओर निहारा
कर दिया उन्मत्त मुझको वारुणी ऐसी पिलाई
अब अपने दृष्टि चषकों में भरो ऐसा महाविष
जब पियूँ उसको पडो बस तुम ही तुम दिखाई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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