Sunday, April 7, 2013

{ ५१७ } {April 2013}






अब न वह रँग है, न रौनक है,
अब न रही भीड-भाड यारों की
मेरे सपनों का शहर अब जैसे
एक बस्ती हो गम के मारों की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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