पल्लव
Thursday, April 18, 2013
{ ५५४ } {April 2013}
क्यों बहाते हो तुम अश्कों का सागर
हम मगरूर हो गये पाकर गुलिस्ताँ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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