पल्लव
Tuesday, April 30, 2013
{ ५७० } {April 2013}
अब नहीं होठों पर.. मुस्कानों का बसेरा है
रूठी ज़ुल्फ़ों की रातें, न आँखों में सबेरा है
पडने लगी है फ़ीकी.. आँखों की चमक भी
चँचल सी चितवन पर.. आ बसा अँधेरा है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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