Saturday, April 6, 2013

{ ५१६ } {April 2013}





दूर से देखे चँदा, चुरा चकोर दिल
जाने न वो कोई उसी का गाफ़िल
शामों-सहर की आहें तकदीर बनीं
हिज्र की बेताबियाँ हुईं मुस्तकिल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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