पल्लव
Tuesday, April 16, 2013
{ ५४१ } {April 2013}
यह जगत है संताप पर संताप. का घर
देख सकता वह सुखी... किसको भू पर
हमारी इन अश्रु-धाराओं पर.. हो रहा है
नव-निर्माण मन-मुदित-प्रासाद सुन्दर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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