Wednesday, October 1, 2014

{ ७६८ } {May 2014}






अब भरोसा ही क्या यहाँ पर किसी का
आँसुओं से तर-बतर है चेहरा सभी का
बढ़ रही कुहू-निशा जमीं-आसमाँ पर
कालिमा नें ढ़ँक लिया रंग चाँदनी का।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment