Monday, October 6, 2014

{ ७९१ ) {Aug 2014}





आग से खिला हूँ, फ़ूल से भी जला हूँ
चल रहा तन्हा, अकेले ही काफ़िला हूँ
ज़िन्दगी में गमों के ही फ़ूल पिरोये हैं
खारजारी राहों पर भी हँस कर चला हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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