पल्लव
Friday, October 24, 2014
{ ८११ } {Oct 2014}
आँखों आँखों में ही मैंने रात गुजारी है
किस कयामत की ज़ुल्मात गुजारी है
दिन का सूरज झुलसाये देता है बदन
लड़खड़ाती आस में हयात गुजारी है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़ुल्मात -घोर अँधकार
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