पल्लव
Friday, December 21, 2012
{ ४०८ } {Dec 2012}
रोज ही होती यहाँगैरतों की मलामत
निकल जाओ बेदाग यही है गनीमत
दबा है ईमान चाँदी के जूतों के नीचे
फ़कत बेईमानों की ऊंची हुई कीमत।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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