Tuesday, December 25, 2012

{ ४४४ } {Dec 2012}





लहर के मानिन्द टकराते रहे
नित नये कूलों को दुलराते रहे
हम समर्पण के स्वभाव वाले
फ़ूल बनकर गँध बिखराते रहे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment