Monday, December 24, 2012

{ ४२८ } {Dec 2012}






मैं वो मुसाफ़िर जो खो गया स्वयं चलते हुए डगर
साँसों के भी पाँव थक चुके खत्म होने को है सफ़र
तन-मन खेल खिलौना बन, खोया भीड तमाशे में
नहीं यहाँ पर हमदर्द है कोई कब छूटेगा ये काराघर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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