Friday, December 21, 2012

{ ४११ } {Dec 2012}





बह उठी दरिया की मौंजें, आँख में उफ़ना समन्दर
कुछ आँसू बह चले हैं, कुछ ठहरे पलकों के अन्दर
हो गये हो तुम दूर जब से छाया भी न पा सके हम
साथ अश्कों ने दिया तब हर डगर हर रहगुजर पर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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