पल्लव
Monday, December 24, 2012
{ ४४१ } {Dec 2012}
कोई जी रहा है, ज़िन्दगी कोई ढो रहा है
कोई फ़ूल चमन में, कोई काँटे बो रहा है
लहू पी रहा है सुबह का ये शातिर अँधेरा
हे ! ईश्वर तेरी दुनिया में ये क्या हो रहा है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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