पल्लव
Saturday, December 22, 2012
{ ४१६ } {Dec 2012}
हर दिशा के हाथ में पत्थर सजे हैं छोटे बडे
एक सुन्दर काँच का घर है हमारी ज़िन्दगी
हो रहा सिन्धु-मंथन, है कहाँ अमृत घडा
देव-असुरों का समर है अब हमारी ज़िन्दगी।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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