पल्लव
Friday, December 21, 2012
{ ४१२ } {Dec 2012}
ज़िन्दगी के वास्ते कुछ ख्वाहिशें तो थीं मगर
रेत का दरिया हमारे ख्वाबों में शामिल न था
डूब ही गया होता अगर जरा घबरा गया होता
मैं था वहाँ दूर तक दिखता जहाँ साहिल न था।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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