पल्लव
Monday, December 24, 2012
{ ४३३ } {Dec 2012}
करवटें बदली कितनी ही बार
पर दर्द का भार न सकी उतार
हाय कठिन है जाने कितनी, ये
भूख की चोट, प्यास की मार।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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