पल्लव
Sunday, December 23, 2012
{ ४२५ } {Dec 2012}
मत सहला-दुलरा इस चितवन की भीगी मुस्कान से
अच्छा है सोया रहने दो अब, मेरे इस झंझावात को
रूठ गयी काल्पनिक दुल्हन पीडा घुट-घुट कर रो रही
किसके द्वार टिकाऊँ अब मैं टूटे सपने की बारात को।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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