झुटपुटा सँध्या का मन हुआ सहज मगन
संकेतों में बात चली मिला मन आलिंगन
मँद मधु बयार चली बाहों में गुँथ गईं बाहें
तन पर छलकी स्वेद बूँदें साँसें हुईं चँदन।।
माथे पर तिरछी रेखायें अन्तर में नाद घनेरे हैं
अनसुलझे हैं प्रश्न मन में द्वन्दो ने डाले डेरे हैं
मधुवन में काँटे ही काँटे अँग-अँग छिला करता
अपना कहने वाले अपने हो गये अब तेरे-मेरे है।।